धनतेरस क्यों मनाते है?

दीवाली/दीपावली हिंदू धर्म के 4 प्रमुख त्योहारों में एक है. दीपावली का त्योहार धन की देवी माँ पार्वती को समर्पित है. दीवाली से 2 दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. जो की कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था. भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के बाद प्रकट होकर देवताओं को राजा बलि के प्रकोप से बचाया था. भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए धनतेरस के दिन लोग नये बर्तन खरीदते हैं.
धनतेरस की मान्यतायें Dhanteras ki Manyataye
धनतेरस मां लक्ष्मी, भगवान धनवंतरी और मृत्यु के देव यमराज की पूजा अर्चना की जाती है. कहते हैं इस दिन समुद्र मंथन में अमृत कलश लेकर भगवान धन्वंतरी प्रकट हुए थे इस लिए इस दिन उनकी पूजा करने पर देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है. धनतेरस के दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है. और फूलों की माला, मिठाई, घी के दिये, धूप, अगरबत्ती, कपूर से भगवान की पूजा अर्चना की जाती है सभी की समृद्धि, बुद्धिमत्ता और शुभ आशीर्वाद के लिए कामनायें की जाती है.
धनतेरस क्यू मनाया जाता?
सभी लोग जानते हैं की दीवाली त्योहार क्यूँ मनाया जाता है Dhanteras kyo manaya jata hai? लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी हैं लोगों को नही पता होता है की आख़िर क्यों मनाया जाता है धनतेरस का त्योहार? और धनतेरस की पौराणिक एवं प्रामाणिक कथा क्या हैं? हमारी पोस्ट धनतेरस से संबंधित सारी जानकारी आप सभी लोगों के ज्ञान को और अधिक बढ़ाएगी.
हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान धनवंतरी जिनको भगवान विष्णु के अंशावतार माना जाता है, ने समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन प्रकट होकर देवताओ की रक्षा की थी. माना जाता है की इस दिन भगवान धनवंतरी अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. माना जाता है की संसार में सुख, शांति और श्रम्रिधि के प्रचार प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था. भगवान धनवंतरी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है.
धनतेरस के दिन क्या करें Dhanteras Ke Din Kya Kare
धनतेरस को लेकर लोगों में अक्सर दुविधा बनी होती है की धनतेरस को क्या करें और धनतेरस के दिन क्या खरीदें Dhanteras ko kya kharide? क्यूंकी धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी की पूजा अर्चना की जाती है इसलिए इस दिन चाँदी या सोने के सिक्के या नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. इसलिए अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार नया बर्तन या भगवान गणेश या माता पार्वती की मूर्ति खरीदना भी शुभमाना जाता है. धन संपत्ति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता यानी भगवान धनवंतरी के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं मृत्यु देवता यमराज के लिए मुख्य द्वार पर भी दीप दान करें.
धनतेरस की दिन की भगवान की पूजा-अर्चना के लिए पूजा समाग्री, फूल, फल, नये बर्तन की लिस्ट ब्बानाकर तैयार रखें. और भगवान गणेश और माता पार्वती की मूर्ति रखना ना भूलें. धनतेरस पर धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है. मां लक्ष्मी और कुबेर जी का चित्र अथवा श्री रूप उत्तर दिशा की ओर स्थापित करें. इससे उत्तर दिशा सक्रिय होगी एवं घर में धन संपदा की कभी कमी नही होगी और हमेशा खुशहाली आती रहेगी.
धनतेरस की तैयारी कैसे करें Dhanteras ki Taiyari Kaise Kare
धनतेरस की तैयारियाँ घरों में हफ्ते दस दिन पहले से सुरू हो जाती है. लोग अपने घरों की सफाई करते है, दीवालों, दरवाजो और खिड़कियों को नये रंग और पेंट से सजाते हैं. घर के हर एक कोने की सफाई की जाती है ताकि की कहीं भी गंदगी ना रहे. कहा जाता है की भगवान धनवंतरी या धन कुबेर साफ स्वच्छ जागह विराजमान होते हैं इसलिए घरों की सफाई करना बहुत ज़रूरी माना जाता है.
धनतेरस की पौराणिक कथा Dhanteras Ki Pauranik Katha
धनतेरस से जुड़ी सबसे पौराणिक और प्रमाणित कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बार बार बाधा डालने और उनकी तपस्या भंग करने के कारण भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी.
कथानुसार, राजा बलि जो की बहुत ही पराक्रमी था देवताओं को अक्सर परेशन किया करता था. राजा बलि के भय से
देवता बहुत परेशान थे. देवताओं ने भगवान विष्णु से उनकी रक्षा करने की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गये लेकिन भगवान विष्णु के वामन रूप को शुक्राचार्य ने पहचान लिया. शुक्राचार्य ने राजा बलि से कहा की वामन कोई और नही स्वयं भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं इसलिए वो जो भी माँगे उन्हें इंकार कर देना.
राजा बलि ने गुरु शुक्राचार्य की एक भी बात नहीं मानी. भगवान विष्णु जो की वामन रूप में राजा बलि के पास आए थे उन्होने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में माँगी. राजा बलि भगवान के वामन रूप को टीन प्स्ग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे, तभी शुक्राचार्य ने लघु रूप धारण कर राजा बलि के कमंडल में प्रवेश कर गये ताकि राजा बलि संकल्प ना ले सके और भगवान वामन को दान ना दे सके.
शुक्राचार्य के कमंडल में प्रवेश करने से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया. लेकिन भगवान वामन शुक्रचार्य कीिस चाल को समझ गाए और तभी भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी और शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए.
शुक्राचार्य के कमण्डल से निकल जाने के बाद राजा बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया. दान में भगवान वामन ने एक पैर से पूरी पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को. इस तरह तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर राजा बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया. इस तरह राजा बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा. दान में सब कुछ खो देने राजा बलि कमजोर हो गया और इस तरह उसके भय से देवताओं को मुक्ति मिली. कहा जाता है की राजा बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गयी. इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है.
धनतेरस में यमराज की पूजा क्यू की जाती है?
Dhanteras ko yamraj ki puja kyu kiya jata hai– धनतेरस में यमराज की पूजा क्यू की जाती है इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार इस दिन एक सुहागन ने अपने पति के प्राणों के यमराज से रक्षा की. कथा के अनुसार उस सुहागन के पति को अकाल मृत्यु का श्राप मिला हुआ था जिससे बचाने के लिए उस सुहागन ने अपने शयन कक्ष के द्वार पर सोने चांदी के सिक्कों का ढेर लगा दिए और सारी जगह दिये जला दिए. फिर अपने पति को जगाये रखने के लिए उसे कहानियां सुनाती रही. तभी यमराज ने साँप के रूप में प्रवेश करने की कोशिश की लेकिन दिये की रोशनी में सोने चांदी के सिक्कों की चमक के कारण साँप के रूप मैं आए यमराज को कुछ भी दिख नही पाया. और जब किसी तरह ढेर के ऊपर से अंदर जाने लगे तो स्त्री द्वारा लगातार कहानियों सुनाए जाने से वो इतने मगन हो गए कि उसके पति को डसना भूल गये.
इस तरह उस सुहागन के पति की मृत्यु का समय टल गया और यमराज को वापस लौटना पड़ा. इस तरह उस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने की परंपरा शुरू हो. यही कारण है की धनतेरस के दिन सोने चाँदी के सिक्के और बर्तन खरीदे जाते हैं. माना जाता है की सोने चाँदी के बर्तन खरीदने से गर मैं आने वेल सभी दुख दूर होते हैं और घर मैं नयी खुशियों का आवागमन होता है.
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