जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा

भारत में एकता में एनेकता है. हर धर्म के लोग मिलजुल कर रहते हैं और एक दूसरे के पर्व को आपसी भाईचारे और सदभावना के साथ मानते हैं. अलग अलग धर्म के लोग रहने के कारण भारत में हर महीने कोई ना कोई एक बड़ा त्योहार ज़रुरू आता है. इसलिए इसे त्योहारों का देश भी कहा जाता है. एक ऐसा ही भाईचारे और सदभावना वाला त्योहार है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा जो की हर साल उड़ीसा राज्य में श्री जगन्नाथ पुरी में पारंपरिक रीति रिवाज के साथ बड़े ही धूमधाम से आयोजित किया जाता है. भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पूरे विश्व में प्रसिध है. हर साल इस रात यात्रा में शामिल होने देश विदेश से भक्तजन यहाँ पहुँचते हैं.
के भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है. इसलिए इस रथयात्रा में भगवान श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम और बहिन सुभद्रा का रथ भी होता है. ऐसी मान्यता है की जो भी इस रथयात्रा में शामिल होता है उसको सौ यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है.
कब होती है जगन्नाथ रथयात्रा
Kab Hoti Hai Jagannath Rath Yatra?
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में हर कोई शामिल होना चाहता है और रथ खींचकर और भगवान का दर्शन कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहता है. बहुत लोग देश के कोने कोने से जगन्नाथ पुरी पहुँचते हैं लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी होते हैं जो जगन्नाथ पुरी जाना तो चाहते हैं लेकिन उनको को यह नही पता होता है की जगन्नाथ रथयात्रा कब शुरू होती है और किस महीने में होती है. जगन्नाथ रथ उत्सव पूरे 10 दिन का होता है जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया से आरंभ होता है शुक्ल एकादशी तक मनाया जाता है. जगन्नाथ रथयात्रा की सबसे प्रमुख विशेषता यह होती है की भगवान जगन्नाथ के रथ को भक्तजन अपने हाथों से खींचते हैं और पुण्य कमाते हैं.
जगन्नाथ की रथ यात्रा 2018
Jagannath Rath Yatra in Puri 2018 Date
जगन्नाथ रथयात्रा- श्रद्धालुओं और भक्तों के आकर्षण का केंद्र है. वर्ष 2018 में जगन्नाथ रथयात्रा की शुरूवात 14 जुलाई से होगी यानी की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रथमा को जगन्नाथ रथयात्रा का पहला दिन होगा.
जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा की जानकारी हिन्दी में- Jagannath Rath Yatra information in hindi
दस दिनों तक चलने वाले इस रथ महोत्सव की शुरूवात आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होती है. रथ यात्रा के पहले दिन भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भक्तजन हाथों से खींचकर जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक लाते हैं.
रथयात्रा में तीनों रथ में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम जी और बहिन सुभद्रा की मूर्तियाँ रखी होती है जिन्हें रथयात्रा के दूसरे दिन पूरे विधि विधान के साथ रथ से उतार कर गुंडीचा मंदिर में लाया जाता है और अगले 7 दिनों तक श्रीजगन्नाथ जी, भाई बलराम और बहिन सुभद्रा यहीं निवास करते है.
7 दिनों तक निवास करने के बाद आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन भगवान जगन्नाथ की वापसी यात्रा की जाती है जिसे उड़ीसा की लोकल भाषा में “बाहुड़ा” यात्रा कहते हैं. इस वापसी यात्रा में पुन: गुंडिचा मंदिर से भगवान के रथ को खिंच कर जगन्नाथ मंदिर तक लाया जाता है. यात्रा पूरी होने के बाद एक बार फिर से तीनो प्रतिमाओ को पुन: गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है और भक्त भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करते हैं की हे भगवान आप अपनी कृपा उन पर बनाए रखें और अगले साल एक बार फिर से उनको अपने दर्शन देकर आशीर्वाद दें.
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जगन्नाथ रथयात्रा का इतिहास हिन्दी में
Jagannath Rath Yatra history in hindi
रथयात्रा से लेकर अनेक मान्यताए हैं लेकिन सबसे पौराणिक मान्यता है कि द्वारका में एक बार भगवान जगन्नाथ से उनकी बहिन सुभद्रा ने नगर देखना चाहा, और उनसे द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की तब भगवान श्री कृष्ण यानी जगन्नाथ ने अपनी बहिन को रथ पर बैठाकर नगर का भ्रमण कराया. यही कारण हैं की हर साल जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में भगवान श्री कृष्ण, भाई बलराम और बहिन सुबद्रा की प्रतिमायें रखी जाती है और इसी घटना की याद में हर साल तीनों देवों को रथ पर बैठाकर नगर के दर्शन कराए जाते हैं.
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की विशेषतायें
Interesting Facts about Jagannath Rath Yatra
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की अनेक विशेषतायें हैं जैसे की इस यात्रा मैं लाखों लोग शामिल होते हैं, ऱथ यात्रा महोत्सव पूरे 10 दिन तक चलता है, भक्तजन हाथों से रथ खिचते हैं और भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना करते हैं. तीनो रथ लकड़ी के बने होते हैं जिनमें भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमायें रखी होती हैं.
भगवान जगन्नाथ का रथ
Name of Lord Jagannath Rath, Height and Color
भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ भी कहा जाता है. यह तीनो रथो में सबसे बड़ा रथ होता है. इसमें कुल 16 पहिए लगे होते हैं. इस रथ की उँचाई 13.5 मीटर होती है. इस रात में लाल व पीले रंग के कप़ड़े का इस्तेमाल होता है. रथ की हिफाजत भगवान विष्णु का वाहक गरुड़ करता है। रथ पर लगे ध्वज को ‘त्रैलोक्यमोहिनी’ कहते है.
भगवान बलराम का रथ– बलराम का रथ ‘तलध्वज’ के नाम से पहचाना जाता है. यह भगवान जनन्नाथ के रथ से छोटा लेकिन सुबद्रा से रथ से बड़ा होता है जिसकी उँचाई 13.2 मीटर होती है. इस रथ में कुल 14 पहिए लगे होते हैं. इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं.
सुभद्रा का रथ– सुभद्रा के रथ को “पद्मध्वज” भी कहते हैं. यह रथ 12.9 मीटर उँचा होता है और इसमें कुल 12 पहिए लगे होते हैं. इस रथ में लाल, काले कपड़े का इस्तेमाल होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं.
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जगन्नाथ रथयात्रा की मान्यता
Importance of Jagannath Rath Yatra
पौराणिक मान्यताओं पर आधारित इस रथयात्रा में शामिल से मोक्ष प्राप्त होता है. रथ को खिचने मात्र से सौ यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है इसलिए सभी भक्तजन हर पल रथ खींचने को आतुर रहते हैं. भगवान जगन्नाथ जी की यह रथयात्रा “गुंडीचा” मंदिर पहुंचकर संपन्न होती है. जगन्नाथपुरी का वर्णन हिंदू धर्म के अनेकों पुराणो जैसे की स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में मिलता है. इसी से पता चलता है की हिंदू धर्म में इस रथ यात्रा का क्या महत्व है.
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